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Friday 2 November 2012

शिक्षकों की भर्ती में सपा को सियासी लाभ की तलाश


शैलेंद्र श्रीवास्तव/लखनऊ 

अखिलेश सरकार प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती में शायद सियासी फायदे तलाश रही है। भर्ती से होने वाले नफा-नुकसान को देखा जा रहा है। यह तलाशा जा रहा है कि तुरंत शिक्षकों की भर्ती से क्या फायदा होगा और कुछ माह बाद भर्ती से कितना फायदा होगा। क्योंकि शिक्षकों की भर्ती से भले ही फौरी तौर 
पर 72 हजार 825 युवक और युवतियां लाभाविंत होंगे, लेकिन फायदा लाखों परिवारों को मिलेगा।

जानकार तो यह भी कहते हैं कि शिक्षकों की तुरंत भर्ती से सरकार को कोई फायदा नहीं दिख रहा है। शायद इसीलिए भर्ती प्रक्रिया के लिए बार-बार नियम बदल कर इसे लटकाया जा रहा है। वजह साफ है, क्योंकि वर्ष 2014 में लोकसभा के चुनाव होने हैं और सरकार इसका फायदा जरूर लेना चाहेगी।

शिक्षकों की भर्ती चुनावी दाव
बेसिक शिक्षा परिषद के प्राइमरी स्कूलों में शिक्षक रखने की योग्यता स्नातक व दो वर्षीय बीटीसी है, लेकिन यूपी में किसी भी सरकार ने नियमित बीटीसी सत्र चलाने में रुचि नहीं ली। इसके पीछे वजह साफ है। नियमित बीटीसी सत्र न चलने से शिक्षकों की कमी बनी रहेगी और सरकार जब चाहेगी बीएड डिग्रीधारकों को छह माह की विशिष्ट बीटीसी की ट्रेनिंग देकर शिक्षक बना देगी। जिससे चुनाव में शिक्षक बनाने वालों के साथ उनके परिजन सरकारी पार्टी की ओर रुख करेंगे।

विशिष्ट बीटीसी से वोट बटोरने का काम
यूपी में विशिष्ट बीटीसी की भर्ती सबसे पहले वर्ष 1998 में तत्कालीन कल्याण सरकार ने शुरू की। उस समय 27 हजार विशिष्ट बीटीसी की सीटों के लिए चयन प्रक्रिया आयोजित की गई। इसके बाद बसपा हो या सपा सभी पार्टियों की सरकारों ने विशिष्ट बीटीसी की भर्ती कर वोट बटोरने का काम किया।

चुनाव की वजह से बसपा सरकार ने की थी टालमटोल
शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने यूपी को 1 जनवरी 2012 तक शिक्षकों की भर्ती की अनुमति दी। इसके लिए जारी नियमावली में व्यवस्था दी गई कि राज्य सरकारें टीईटी पास करने वाले बीएड डिग्रीधारकों को प्राइमरी स्कूलों में प्रशिक्षु शिक्षक के पद पर सीधे भर्ती कर सकती हैं, लेकिन तत्कालीन बसपा सरकार ने राजनीतिक फायदे के लिए वर्ष 2010 में मिली अनुमति के आधार पर भर्ती तुरंत शुरू न कर नवंबर में 2011 में भर्ती प्रक्रिया शुरू की। तत्कालीन बसपा सरकार के रणनीतिकारों का मानना था कि नवंबर में भर्ती प्रक्रिया शुरू होने से वर्ष 2012 में होने वाले विधानसभा चुनाव में इसका फायदा मिलेगा, लेकिन टीईटी में धांधली की शिकायत के बाद भर्ती प्रक्रिया रुक गई।

शिक्षकों की भर्ती से लोकसभा चुनाव का संबंध
यूपी में सत्ता बदलने के बाद अखिलेश सरकार ने शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में तेजी तो दिखाई, लेकिन धीरे-धीरे इस सरकार ने भी लटकाना शुरू कर दिया। पहले शिक्षकों की सीधी भर्ती के स्थान पर विशिष्ट बीटीसी के माध्यम से भर्ती का निर्णय किया गया। इसके लिए बार-बार मेरिट की प्रक्रिया बदली गई और अंतत: यह तय किया गया कि पूर्व की भांति प्राइमरी स्कूलों में प्रशिक्षु शिक्षकों की सीधी भर्ती की जाएगी।

विभागीय जानकारों की माने तो इसके लिए अध्यापक सेवा नियमावली में प्रावधान करना होगा। सबसे पहले बेसिक शिक्षा निदेशालय से प्रस्ताव प्राप्त करना होगा। इसके बाद शासन स्तर पर इसका परीक्षण कर वित्त व न्याय विभाग से मंजूरी लेकर इसे कैबिनेट से पास कराया जाएगा। इसके बाद शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया तय की जाएगी। यह प्रक्रिया पूरी होने में कम से कम तीन से चार माह लग जाएंगे और तब तक मार्च 2013 आ जाएगा। मार्च या अप्रैल में भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के साथ लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां बढ़ जाएंगी और इस स्थिति में सियासी लाभ की संभावना बढ़ जाएगी।






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